सुधा यादव : साधारण सी महिला के असाधारण कार्यों ने दिलाया ये स्थान

नयी दिल्ली, बीजेपी द्वारा अपनी पार्लियामेंट्री बोर्ड और चुनाव समिति की घोषणा करते ही डा0 सुधा यादव देश भर में चर्चा का केंद्र बन गईं हैं।

2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों का बिगुल फूंकने से पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने संगठन को दुरुस्त करना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में बीजेपी ने अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का नए सिरे से गठन किया है। इसमें नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गजों को जगह नहीं मिल सकी। लेकिन दो महिला नेताओं ने इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। ये महिला नेता पूर्व सांसद सुधा यादव और वनाथी श्रीनिवासन हैं। सुधा यादव को दोनों समितियों में जगह मिली है जबकि वनाथी श्रीनिवासन को मात्र प्रचार समिति में जगह मिलीं हैं।

सुधा यादव के पति सुखबीर सिंह यादव सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में डिप्टी कमांडेंट थे। करगिल युद्ध में सीमा पर पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। सुधा यादव ने आई आई टी  रुड़की से  स्नातक किया है। शहीद की विधवा के कोटे के तौर पर उनको लेक्चरर की नौकरी मिल गई थी।

सुधा यादव की जिंदगी में पति के वियोग का दुख को बहुत समय नहीं हुआ था कि देश में लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई। इस बीच उनके पास एक भाजपा नेता का फोन आता है, जो उन्हें बीजेपी से महेंद्रगढ़ से कांग्रेस उम्मीदवार और शाही घराने से आने वाले राव इंद्रजीत सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने का आफर देता है। सुधा यादव को चुनाव लड़ने का आफर देने वाले ये नेता थे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो उस समय हरियाणा के चुनाव प्रभारी हुआ करते थे। लेकिन सुधा यादव ने  विनम्रता से इनकार कर दिया। लेकिन नरेंद्र मोदी ने हिम्मत नही हारी। उन्होने फिर सुधा यादव से कहा कि आज आपकी जरूरत परिवार से ज्यादा देश को है तो वह चुनाव लड़ने को तैयार हो गईं।

लेकिन अभी मुश्किलों ने पीछा नही छोड़ा था। अब मुश्किल ये थी कि उनके सामने खड़े राव इंद्रजीत सिंह दिग्गज कांग्रेसी नेता थे। जो शाही घराने से आते थे। रेवाड़ी राजपरिवार के राव इंद्रजीत सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए एक शहीद की विधवा के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। इसका भी हल नरेंद्र मोदी ने निकाला। उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग में उन्होंने अपनी मां हीराबेन से मिले 11 रुपए सुधा यादव को चुनाव लड़ने के लिए दिए और वहां मौजूद सभी लोगों से मदद की अपील की। जिसके बाद अगले कुछ ही मिनटों में सुधा के चुनाव लड़ने के लिए साढ़े सात लाख रुपए जमा हो गए थे।

जब चुनावों के नतीजे आए तो सुधा यादव ने अपनी जिंदगी के पहले चुनाव में दिग्गज कांग्रेसी नेता राव इंद्रजीत सिंह को करीब डेढ़ लाख वोटों से मात दे दी थी। इसके बाद 2004 मे महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट और 2009 में गुड़गांव सीट से लोकसभा चुनाव में सुधा यादव को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद पार्टी ने उन्हें संगठन में जगह दी। 2015 में उन्हें बीजेपी ओबीसी मोर्चा का प्रभारी बनाया गया। आज सुधा यादव बीजेपी के सबसे पावरफुल संसदीय बोर्ड की एकमात्र महिला सदस्य चुनी गई हैं। उनसे पहले पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस टीम की एकमात्र महिला सदस्य हुआ करती थीं।

बीजेपी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में सुधा यादव को शामिल किए जाने को लेकर बड़े बड़े कयास लगाए जाने लगे हैं।  पहला ‘यादव फैक्टर’ के चलते माना जा रहा है कि बीजेपी जिसे हाल ही में बिहार से झटका मिला है, सुधा यादव एक बड़ा फायदा दे सकती हैं। दूसरा हरियाणा में बीजेपी की जमीन एक बार फिर पहले से ज्यादा मजबूत करने में भी सुधा यादव का चेहरा और काम बीजेपी के लिये काम आयेगा।

भारतीय जनता पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई संसदीय बोर्ड में शामिल सुधा यादव भी पार्टी के इस फैसले से खुश हैं और आज उन्होने  पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात कर उनका आभार जताया। सुधा यादव ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाक़ात कर केंद्रीय संसदीय बोर्ड एवं केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल करने पर उनका आभार व्यक्त किया।’’

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