प्रोफेसर चौथीराम यादव : हिंदी आलोचना की ठसक भरी आवाज हुई शांत

लखनऊ,  जाने-माने लेखक, चिंतक और साहित्यकार, हिंदी के आलोचक और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर चौथीराम यादव का रविवार 12 मई 2024 को निधन हो गया। वह 86 वर्ष के थे। वह अपने पीछे पांच बेटों और बहुओं का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं।

सांस लेने में दिक्कत के बाद परिजनों ने उन्हें शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां शाम 6:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। पुत्र अशोक यादव के अनुसार, उन्हें सांस लेने में समस्या हो रही थी। परिजन उनकों लेकर एक निजी अस्पताल पहुंचे। वहीं पर चौथी राम ने अंतिम सांस ली। वहां कार्डियक अरेस्ट से उनकी मौत हो गई। उनके तीसरे पुत्र और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रो. अनुराग यादव ने बताया कि पिताजी बिल्कुल ठीक थे। अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद 15 मिनट के अंदर ही सबकुछ हो गया।

प्रो. चौथीराम का जन्म 29 जनवरी 1941 को जौनपुर जिले की शाहगंज तहसील के कायमगंज गांव मे हुआ था। आप 2003 में बीएचयू से सेवानिवृत्त हुए थे। चौथीराम के निधन से हिंदी साहित्य जगत को झटका लगा है। साहित्यकारों ने उन्हें हिंदी का जनबुद्धिजीवी बताते हुए उनके निधन को हिंदी आलोचना के एक युग का अवसान करार दिया है। बीएचयू हिंदी विभाग के अध्यक्ष रह चुके प्रो. चौथी राम अपनी वैचारिकी के लिए सड़कों पर उतर कर आंदोलनों में सक्रियता दिखाई। वक्ता, लेखक और एक्टिविस्ट के त्रिकोण को उनका व्यक्तित्व बखूबी समेटता रहा है। वे प्रख्यात हिंदी विद्वान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। उनके अंतिम बचे शिष्यों में से एक थे।

प्रो. चौथीराम यादव को साहित्य साधना सम्मान, लोहिया साहित्य सम्मान, कबीर साहित्य सम्मान समेत कई सम्मान से सम्मानित किया गया था। पिछले वर्ष ही उन्हें कबीर राष्ट्रीय सम्मान मिला था। उनकी प्रमुख कृतियों में छायावादी काव्य : एक दृष्टि, मध्यकालीन भक्तिकाव्य में विरहानुभूति की व्यंजना, हिंदी के श्रेष्ठ रेखाचित्र, हजारी प्रसाद द्विवेदी का समग्र पुनरावलोकन, लोक और वेद आमने-सामने आदि शामिल हैं।

चौथी राम यादव की प्रमुख कृतियां:

  • उत्तरशती के विमर्श और हाशिए का समाज
  • हजारीप्रसाद द्विवेदी समग्र पुनरावलोकन और लोकधर्मी साहित्य की दूसरी धारा[2]
  • लोक और वेद: आमने सामने

सम्मान

  • साहित्य साधना सम्मान (बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना),
  • सावित्री त्रिपाठी सम्मान,
  • अस्मिता सम्मान,
  • कबीर सम्मान,
  • आंबेडकर प्रियदर्शी सम्मान,
  • लोहिया साहित्य सम्मान

उनके निधन पर साहित्यकार डॉ. इंदीवर पांडेय, डॉ. मधुकर मिश्र, नवगीतकार सुरेंद्र वाजपेयी, डॉ. जितेंद्र नाथ मिश्र आदि ने शोक संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि यह हिंदी साहित्य की अपूरणीय क्षति है।

 प्रो. चौथीराम यादव काशी की आचार्य परंपरा की अंतिम कड़ी थे। विद्वता के साथ-साथ उनका सहज व्यक्तित्व उन्हें सबसे अलग करता था। भक्ति काल को नए ढंग से देखने की उनके अंदर समझ थी। सेवानिवृत्ति के बाद भी वह सामाजिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भागीदारी करते थे।

– साहित्यकार डॉ. राम सुधार सिंह

  प्रो. चौथीराम एक ऐसे आलोचक थे, जो सामाजिक परिवर्तन के लिए साहित्य और साहित्य के लिए सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से आलोचना करते थे। वह मार्क्सवादी और आंबेडकर दोनों दृष्टिकोणों के समन्वित रूप से हिंदी आलोचना में प्रवृत्त थे। उनके लेखन का 70 फीसदी हिस्सा उनके रिटायरमेंट के बाद पाठकों के सामने आया। सेवानिवृत्ति के बाद भी अनवरत काम करके वह नजीर बने। बनारस के साहित्य के प्रतीक काशीनाथ सिंह ने अपनी किताब काशी का अस्सी में भी प्रो. चौथीराम का जिक्र किया है।

प्रोफेसर विशाल विक्रम सिंह, जयपुर विश्वविद्यालय

हिंदी आलोचना की एक ठसक भरी आवाज शांत हो गई। एक भरपूर, स्वाधीन और सक्रिय साहित्यिक जीवन जीते हुए प्रो. चौथीराम यादव ने इस जीवन को अलविदा कहा। एक बौद्धिक के साथ वे आंदोलन धर्मी रहे और स्त्री व दलित से जुड़े आंदोलनों में सक्रिय रहे। हाशिए के समाज से लेकर समाज के हाशिए तक को समझने में उनकी समान गति थी। भक्तिकाल में कबीर और आधुनिक काल में हजारी प्रसाद द्विवेदी से जुड़कर उनकी आलोचना का विकास हुआ। बौद्धिक स्तर पर बुद्ध और आंबेडकर को वह एक साथ समझते थे। तकनीकी की दुनिया में भी गजब की रुचि थी। कह सकते हैं वह कि जीवन का पोर-पोर जीते थे।

– प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल, हिंदी विभाग, बीएचयू

 

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